संत जालाराम बापा की अमर कहानी

श्रीराम भक्त संत जालाराम बापा गुजराती हिन्दु संत थे। उनका जन्म 1799 में गुजरात के राजकोट जिले के वीरपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और मां का नाम राजबाई था। बापा की मां एक धार्मिक महिला थी, जो साधु-सन्तों की बहुत सेवा करती थी।

उनकी सेवा से प्रसन्न होकर संत रघुवीर दास ने आशीर्वाद दिया कि उनका दूसरा पुत्र जालाराम ईश्वर तथा साधु-भक्ति और सेवा की अमिट मिसाल बनेगा। 30 अक्टूबर को संत जालाराम बापा की जयंती है।

महज 16 साल की उम्र में जालाराम का विवाह वीरबाई से हुआ। लेकिन वे वैवाहिक बन्धन से दूर होकर सेवा कार्यो में लगना चाहते थे। जब जालाराम ने तीर्थयात्राओं जाने का मन बनाया तो पत्नी वीरबाई ने भी बापा के कार्यो में अनुसरण करने में रुचि दिखाई।

18 साल की उम्र में जालाराम बापा ने फतेहपुर के संत भोजलराम को अपना गुरू स्वीकार किया। गुरू ने गुरूमाला और श्री राम नाम का मंत्र लेकर उन्हें सेवा कार्य में आगे बढ़ने के लिये कहा, तब जालाराम बापा ने 'सदाव्रत' नाम की भोजनशाला बनाई जहां 24 घंटे साधु-सन्त तथा जरूरतमंद लोगों को भोजन कराया जाता था।

संत जालाराम की आयु 20 वर्ष के होने तक उनकी सरलता व भगवत प्रेम की ख्याति चारों तरफ फैल गई। लोगों ने तरह-तरह से उनके धीरज या धैर्य, प्रेम प्रभु के प्रति अनन्य भक्ति की परीक्षा ली। जिन पर वे खरे उतरे। इससे लोगों के मन में संत जालाराम बापा के प्रति अगाध सम्मान उत्पन्न हो गया।

उनके जीवन में उनके आशीर्वाद से कई चमत्कार लोगों ने देखे। जिनमे से प्रमुख बच्चों की बीमारी ठीक होना व निर्धन का सक्षमता प्राप्त कर लोगों की सेवा करना देखा गया। हिन्दु-मुसलमान सभी बापा से भोजन व आशीर्वाद लेते थे। इस तरह वह सर्वधर्म सम्भाव के रूप में बहुत प्रतिष्ठित थे।

एक बार की बात है तीन अरबी युवा वीरपुर में बापा के अनुरोध पर भोजन किया, भोजन के बाद युवाओं को शर्म महसूस हुई, क्योंकि उन्होंने अपने बैग में पक्षी रखे थे। बापा के कहने पर जब उन्होंने बैग खोला, तो वे पक्षी फड़फड़ाकर पक्षी उड़ गए, बापा उन पर नाराज नहीं हुई बल्कि उन्हें आशीर्वाद देकर उनकी मनोकामना पूरी की।

बापा मानते थे कि 'प्रभु ने मुझे यह कार्य सौंपा है इसीलिए प्रभु देखते हैं कि हर व्यवस्था ठीक से हो सन्‌ 1934 में भयंकर अकाल के समय उनकी पत्नी वीरबाई, मां एवं बापा ने 24 घंटे लोगों को खिला-पिलाकर लोगों की सेवा की। सन्‌ 1935 में मां ने एवं सन्‌ 1937 में बापा ने प्रार्थना करते हुए अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया।

कहते हैं कि आज भी जालाराम बापा की श्रद्धापूर्वक प्रार्थना करने पर लोगों की समस्त इच्छाएं पूरी हो जाती है।

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