मैं प्रेम हूँ !
मैं प्रेम ही ईश्वर की श्रेष्ठ रचना, मैं पूर्णतः स्वतंत्र , फिर भी परतंत्रता का जीवन जी रहा हूँ. मैं असीमित हूँ फिर भी सीमा में कैद हो कर रह गया हूँ. कभी मैं कृष्ण की बंसी में था तब मैं उन्माद में था मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था मैं रिश्तो की कसौटी पर जहाँ खड़ा हो जाऊ रिश्ते टूटते नहीं थे आज टूटते हुए मानवी रिश्तो के बीच मैं खुद को असहज महसूस करता हूँ . कभी मैं कृष्ण राधा के रूप में पूजनीय बना तब शायद मुझे पता नहीं था की मैं मंदिरो की मूर्ति बनकर रह जाऊगा.
मैंने मनुष्य को धर्म दिया जिसका आधार मैं स्वयं था लेकिन लोगो ने मुझे भूलना शुरू कर दिया धर्म में आई कठोरता का कारण मुझे भुलाना ही है . कभी मैं जातीय बंधनो से मुक्त था फिर तुम मनुष्यो ने मुझे जातीय सीमा में बाँध दिया मैं तुम्हरे जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए आया था, पर तुम्हारी घृणा के बीच फंस कर रह गया. कभी मुझे अँधा कहा गया और कभी मुझे मोह की संज्ञा दे दी गई पर मुझे शायद किसी ने पहचानने की कोशिश नहीं की…..मोह बंधन का काम करता है और मैं लोगो को स्वतंत्र बनता हूँ… मोह व्यक्ति को कमजोर बनता है जबकि मैं श्रेष्ठ.
इसलिए हे मनुष्यो मुझे मत भुलाओ. मेरी व्यापकता में ही तुम्हारा कल्याण है मुझमें किसी माँ की ममता छिपी है, किसी का स्नेह और किसी का प्रेम, तो किसी का विश्वास. तुम मुझसे मत खेलो तुम शायद इन्हे तोड़ने के बेहतर खिलाड़ी हो सकते हो पर मुझे खेलना नहीं आता, मुझे आता है तो केवल निर्माण.
मित्रो प्रेम हमारे मन मस्तिस्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है हमें मनुष्यता के लिए प्रेरित करता है और प्रकृति से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए प्रेम के प्रसार से ही मनुष्यता का प्रसार है.
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