आज से कई सालों पहले उस पश्विमी संत ने भी यही कहा था कि आखिर प्यार पर पहरा कैसा? प्यार तो दो आत्माओं का मिलन है आप उस पर जितने पहरे लगाओगे वह उतना ही उभर के बाहर आएगा। लेकिन अफसोस उस समय किसी ने भी उसकी बात नहीं मानी और उसको सूली पर चढ़ा दिया गया। देर-सवेर लोगों ने प्यार के मायने जाने और उस पश्विमी संत वेलेंटाइन की सच्चे प्रेम की आत्म आहूति को चिरस्मृति में बनाए रखने के लिए एक पर्व को सार्वजनिक तौर पर मान्यता दी, जिसे हम आज वेलेंटाइन-डे के नाम से जानते हैं। इस दिन दो प्रेमी एक दूसरे के सामने प्यार का इजहार करते है। एक-दूसरे को रंगबिरंगी फुल, कार्ड, चॉकलेट और अन्य कई सारी गिफ्ट देते हैं। भारत में होली, भगोरिया, वसंतोत्सव बहुत उत्साह से मनाया जाता है और पश्विमी संस्कृति से आए हुए इस पर्व को पाश्चात्य सभ्यता की देन कहकर उसे मनाए जाने पर आपत्ति दर्ज की जाती है। एक प्रकार से देखा जाए तो वेलेंटाइन वसंतोत्सव का ही एक आधुनिक नाम है क्योंकि यह दिन वसंत के मौसम में ही आता है। यह पर्व सिर्फ दो प्रेमियों तक सीमित नहीं रहता बल्कि पशु-पक्षी भी वेलेंटाइन-डे मनाते हैं। वसंत के मौसम ही पशु-पक्षियों क...